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गोरखपुर : भोजपुरी संगम के 167वीं बइठकी ; गजल समीक्षा आ कविता पाठ से सजल महफिल

09:38 PM Jan 15, 2024 IST | khabar Bhojpuri Desk
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गोरखपुर। 'भोजपुरी संगम' के 167वीं बइठकी गोरखपुर  में जमल। संस्था कार्यालय में जय प्रकाश मल्ल के अध्यक्षता आ नंद कुमार त्रिपाठी के सरस संचालन में सम्पन्न भइल एह बइठकी में गजल समीक्षा आ कविता पाठ भइल।

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बइठकी के पहिला सत्र में डॉ. बहार गोरखपुरी के भोजपुरी गजलन के समीक्षा कइल गइल। समीक्षा क्रम के आरंभ करत गजलकार सृजन गोरखपुरी कहलें कि वर्तमान जिनगी आ अनुभवन से भरल बहार के गजल अपना सहजता आ बहुव्यंजना के दृष्टि से महत्वपूर्ण बा। ऊ गजल के रूप में समाज के देह रच रहल बाड़ें। जवन समकालीनता के दृष्टि से साहित्य के मन के प्रफुल्लित करेला।

समीक्षा क्रम के आगे बढ़ावत गीतकार आ पत्रकार वीरेंद्र मिश्र 'दीपक' कहलें कि बहार के भोजपुरी गजलन में जनवादी तेवर मवजूद बा आ एमे गजलियत आ व्याकरण के गंभीरता से खयाल रखल गइल बा। पाठकीय समीक्षा के अंतर्गत प्रदीप मिश्र भोजपुरी गजल के दिशा में बहार के प्रयास ले सरहलें। वागीश मिश्र बहार के गजलन में यथार्थ के जीवंत चित्रण के प्रशंसा कइलें। अध्यक्षता कs रहल जय प्रकाश मल्ल बहार के भोजपुरी गजलन पs सुखद आश्चर्य व्यक्त करत उद्घाटित कइलें कि भोजपुरियो में सशक्त गजल रचल जा सकत बा, एमे बहुत कुछ देखल-सुनल जा सकत बा।

बइठकी के दुसरका सत्र में कवि लोग भोजपुरी के समृद्ध रचना पढ़ल लो-

यशस्वी 'यशवंत' के सरस रचना से बइठकी के राममय सुरुआत भइल-

आजु अयोध्या के उत्सव में मिथिलो नाची-गाई,
बेटी के ससुरा में बरसन बाद इस सुभ दिन आई।

सूरज राम 'आदित्य' भोजपुरी में नया कविता के समावेश कइलें-

अम्मा के गुजरले/ एगो समय हो गइल/ सायद उ आज रहतीं/ त देखतीं कि/ हम केतना सुधरि गइल बानी/ हम केतना बदलि गइल बानी

अरविंद 'अकेला' निर्गुण रचना पढ़लें -

ये मैना के कवन भरोसा, कब पिंजरा छोड़ उड़ि जाई,
खुलल आँखि खुलले रहि जइहें, केहू समझि न पाई।

कुमार अभिनीत जाड़ा के सटीक चित्रण कइलें-

गँटई गाँती, देहीं सुइटर, हाथ गोड़ कठुआइल बा,
चलीं दुवारे कउड़ा बारीं, बड़वर जाड़ा आइल बा।

नंद कुमार त्रिपाठी भोजपुरी गजल में नया तेवर प्रस्तुत कइलें --

कटल बा पाँखि अब एहवाँ उड़ान से पहिले,
नतीजा आ गइल बा इंतहान से पहिले।

सृजन गोरखपुरी अपना चर्चित गजल में कहलें-

बहुत मायूस बा खुद्दार एहवाँ,
सुफल हर डेग चातुर हो रहल बा ।

डाॅ.फूलचन्द प्रसाद गुप्त के दोहा बइठकी के उँचाई प्रदान कइलस-

बेर-बेर अन्हार के, कहेला भइल अँजोर।
सेन्ही में गावत हवे, जइसे जब्बर चोर।।

वीरेंद्र मिश्र 'दीपक' अपना चर्चित रामनामी गीत से समा बंधलें। राम समुझ 'साँवरा' जाड़ा से ठिठुरत गरीबी के गीत में ढललें। ओम प्रकाश पाण्डेय 'आचार्य' अपना रचना से स्वर्गीय पंडित हरिराम द्विवेदी के श्रद्धांजलि अर्पित कइलें। एह लोगन के अलावे बइठकी में वागेश्वरी मिश्र 'वागीश', बहार गोरखपुरी, डा. अजय राय 'अनजान' आदि कवियन के रचना उल्लेखनीय रहल।

प्रदीप मिश्र, राघवेन्द्र मिश्र आ डा. विनीत मिश्र आदि लोगन के विशेष उपस्थिति से समृद्ध बइठकी खातिर इं. राजेश्वर सिंह आभार व्यक्त कइलें। अंत में पिछिला बरिस 'सत्तन सम्मान' से सम्मानित आकाशवाणी आ दूरदर्शन से जुड़ल भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार पं. हरिराम द्विवेदी के निधन पs दु मिनट के मौन रखके श्रद्धांजलि दिहल गइल।

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