53 बरिस बाद महाप्रभु जगन्नाथ के नेत्र उत्सव आ रथ यात्रा एकही दिन
भुवनेश्वर : पुरी में रथ यात्रा के उत्सव के तइयारी बहुते धूमधाम से चल रहल बा। 53 बरिस के बाद महाप्रभु जगन्नाथजी के नेत्र उत्सव आ रथ यात्रा एकही दिन संपन्न होई। 7 जुलाई के ई उत्सव होई।
नहान के बाद बीमार पड़ गइल रहलें महाप्रभु जगन्नाथ
देवस्थान पूर्णिमा के दिन यानी की 22 जून के भक्त भगवान जगन्नाथ के 108 घड़ा के जल से नहान करावल गइल रहे, जवना से महाप्रभु के बोखार आ गइल आ उऽ बीमार हो गइलें। ओकरा बाद उनकर उपचार कइल जात रहें। रथ यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ भाई बलराम अउरी बहिन सुभद्रा के साथे अपना मौसी के घरे जइहें।
काहे बन रहल बा ई दुर्लभ संजोग
अबकि बेर रथ यात्रा 16 जुलाई के समाप्त होई। तिथि में गड़बड़ी के कारण अइसन संजोग बन रहल बा। एह बरिस आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष में तिथि घटला के चलते अइसन होता। हमेसा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के द्वितीया के रथ यात्रा आरंभ होला आ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के 11वां दिन ई समाप्त होला।
तीनों रथन के नांव
रथ यात्रा में पहिला रथ महाप्रभु जगन्नाथजी के होला। भगवान जगन्नाथजी के रथ का नांव 'नंदी घोष' हऽ।
दूसरा रथ भगवान बलराम के होला। बलरामजी के रथ के नांव 'तालध्वज' हऽ। तीसरा रथ महाप्रभु जगन्नाथजी के बहिन सुभद्राजी के होला। सुभद्राजी के रथ के 'पद्म ध्वज' कहल जाला।