एम्स गोरखपुर पिस्तौल-रिवाल्वर आ राइफल कारतूस मंगलख, पुलिस उलझन में पड़ गइल, पढ़ीं काहे
एम्स गोरखपुर पुलिस से कारतूस मंगले बा। एकरा चलते पुलिस उलझन में पड़ गइल बा। फोरेंसिक विभाग पिस्तौल-रिवाल्वर आ राइफल कारतूस-केस के मांग कइले बा, जवना से छात्र के पढ़ावे में मदद मिली।
अखिल भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान (एम्स), गोरखपुर में विद्यार्थियन के पढ़ावे खातिर पुलिस विभाग से कारतूस मंगले बा। पहिला बेर आवे वाला अइसन मांग के चलते पुलिस उलझन में पड़ गइल बिया। नियम के मुताबिक बिना लाइसेंस के कारतूस देवे के कवनो प्रावधान नइखे। पुलिस अधिकारी के कहनाम बा कि मुख्यालय से दिशा-निर्देश मिलला के बाद ही ऊ लोग एकरा पs फैसला करीहे।
असल में एम्स के फोरेंसिक विभाग के एमबीबीएस आ पीजी के छात्र के पढ़ाई खातीर कारतूस के जरूरत बा। अलग अलग बोर के कारतूस कइसे आदमी के शरीर में चोट पहुंचावेला। अध्ययन के दौरान गोली के कोण आ ओकरा से शरीर के होखेवाला नुकसान के बारे में जानकारी दिहल जाला। साथे गोली लगला के बाद घायल के इलाज के दिशा तय करे खातीर व्यावहारिक जानकारी देवे के पड़ेला। अधिकतर संस्थान फायरिंग के दौरान बनल कियोस्क आ बिंदु के इस्तेमाल से अध्ययन करेले। कुछ प्रतिष्ठानन में बंदूक भी बा जवना के लाइसेंस के जरूरत ना पड़ेला।
एही से पुलिस उलझन में बा
पुलिस विभाग के एक-एक कारतूस के जानकारी राखे के पड़ेला। पुलिस जवानन के नाम पर कारतूस आवंटित कइल जाला। दिहल कारतूस के संख्या के हिसाब राखे के पड़ेला। नियम के मुताबिक कारतूस के इस्तेमाल कइला के बाद खोल के भी जमा करे के पड़ेला।
अवैध कारतूस रखे के हथियार अधिनियम के तहत केस
कवनो व्यक्ति भा संगठन के लगे कारतूस सिर्फ कानूनी तौर पs हो सकता। जदी कवनो व्यक्ति भा संगठन के लगे लाइसेंसधारी बंदूक नइखे तs ओकरा लगे मिलल कारतूस गैरकानूनी हो जाई आ ऊ हथियार अधिनियम के दायरा में आ जाई जवना में केस दर्ज करे के प्रावधान बा। अइसने में कवनो आदमी बिना लाइसेंस के हथियार भा कारतूस ना राखेला।
एसपी लाइन, कृष्ण कुमार बिश्नोई कहले कि अध्ययन में इस्तेमाल खातीर कारतूस-केस के एम्स से मौखिक मांग बा। अइसन कवनो व्यक्ति भा संस्था के कारतूस ना दिहल जा सकेला । जदी एम्स से मांग लिखित रूप में आइल तs मुख्यालय से एकरा पs गाइडलाइन लेला के बाद कारतूस उपलब्ध करावल जाई।
एम्स गोरखपुर के मीडिया प्रभारी डाॅ. विद्यार्थियन के अलग-अलग प्रकार के कारतूस के बारे में बतावल जाला आ हरेक कारतूस के शरीर पs कवन असर पड़ेला। एकरा अलावे पोस्टमार्टम के दौरान भी ई जानकारी दिहल जाला। मेडिकल स्टडीज के ई एगो महत्वपूर्ण हिस्सा हs।
भारतीय मेडिकल काउंसिल के मुताबिक फोरेंसिक म्यूजियम में प्रोटोटाइप फायर आर्म होखे के चाही।
एह मेडिकल कॉलेजन में एही तरह से पढ़ाई होला
आईएमएस बीएचयू : फोरेंसिक विभाग के प्रोफेसर। सुरेन्द्र पाण्डेय कहले कि कृत्रिम कारतूस अउरी गोला के इस्तेमाल होखेला। एकर विवरण विद्यार्थियन के अइसहीं बतावल जाला।
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज : फोरेंसिक विभाग के राजीव रंजन के कहनाम बा कि विभाग के संग्रहालय में बंदूक, कारतूस आ बंदूक के पाउडर आदि बा। विद्यार्थियन के ओही से पढ़ावल जाला।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर : फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के डॉ. प्रदीप यादव के मुताबिक फायरिंग के बाद छात्र के कियोस्क अउरी एग्जिट प्वाइंट के माध्यम से पढ़ावल जाला।