दहेज के झूठा आरोप से बचे खातिर इलाहाबाद हाईकोर्ट दुल्हिन-दुल्हा के इ सलाह देले बा
कोर्ट इहो पूछलस कि दहेज के मांग के आरोप लगावे वाला लोग अपना आवेदन के संगे अयइसन सूची काहें ना देवेले। दहेज निषेध कानून के पूरा भावना से पालन करे के चाही। कोर्ट कहलस कि नियम के मुताबिक दहेज आ उपहार में अंतर बा। बियाह के दौरान लईका आ लईकी के मिलल उपहार के दहेज में शामिल नइखे कइल जा सकत।
दहेज उत्पीड़न के मामला के सुनवाई करत इलाहाबाद हाईकोर्ट कहलस कि बियाह के समय वर-वधू के मिलल उपहार के सूची राखल जाए। ताकि बियाह के बाद दुनो पक्ष एक दूसरा प दहेज के झूठा आरोप ना लगा सके। एकरा अलावे एकरा प वर-वधू के हस्ताक्षर भी होखे के चाही। अइसन कइला से विवाद के निपटारा में मदद मिली।
याचिका के अगिला सुनवाई के तारीख 23 मई होई। कोर्ट राज्य सरकार से पूछले बिया कि का राज्य सरकार दहेज निषेध कानून के तहत कवनो नियम बनवले बिया? अगर ना त एकरा पर विचार करीं । हाईकोर्ट कहलस कि दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के धारा 3 में दहेज देवे भा लेवे प कम से कम 5 साल के जेल आ कम से कम 50,000 रुपया चाहे दहेज के मूल्य के बराबर राशि के जुर्माना के प्रावधान बा।
उपहार के दहेज के दायरा में शामिल नइखे कइल जा सकत।
दहेज निषेध अधिनियम 1985 के हवाला देत कोर्ट कहलस कि ए कानून में एगो नियम बा कि वर-वधू के मिलल उपहार के सूची बनावे के चाही। एहसे साफ हो जाई कि का मिलल बा । अदालत कहलस कि बियाह के दौरान मिलल उपहार के दहेज के दायरा में नइखे राखल जा सकत। ई आदेश जस्टिस विक्रम डी. चौहान अंकित सिंह आ अउरी लोग के याचिका के सुनवाई करत घरी दिहले बाड़न।
"दहेज आ उपहार में अंतर बा"
कोर्ट इहो पूछलस कि दहेज के मांग के आरोप लगावे वाला लोग अपना आवेदन के संगे अइसन सूची काहें ना देवेले। दहेज निषेध कानून के पूरा भावना से पालन करे के चाही। कोर्ट कहलस कि नियम के मुताबिक दहेज आ उपहार में अंतर बा। बियाह के दौरान लईका आ लईकी के मिलल उपहार के दहेज में शामिल नइखे कइल जा सकत। कोर्ट कहलस कि एगो बढ़िया स्थिति होई कि मौका प मिलल सभ चीज़ के सूची बनावल जाए। एकरा प दुल्हा-दुल्हिन दुनो के हस्ताक्षर भी होखे के चाही।
हाईकोर्ट के सवाल यूपी सरकार से?
कोर्ट कहलस कि, 'दहेज निषेध अधिनियम, 1985 केंद्र सरकार एह भावना से बनवले रहे कि भारत में शादी-बियाह में उपहार देवे के रिवाज बा। भारत के परंपरा के ध्यान में राखत उपहार अलग-अलग राखल गइल बा। कोर्ट कहलस कि दहेज निषेध अधिकारी के भी तैनाती होखे के चाही। बाकी आज तक अइसन अधिकारी के बियाह में नइखे भेजल गइल। राज्य सरकार के बतावे के चाही कि उ अइसन काहें ना कइलस, जबकि दहेज के शिकायत से जुड़ल मामला बढ़ता। दहेज उत्पीड़न के मामला कवनो बियाह के 7 साल बाद तक दायर कइल जा सकता। अक्सर अइसन मामला अदालत में पहुंचेला, जवना में विवाद कवनो दोसर कारण से होखेला, बाकी दहेज के आरोप लगावल जाला। अइसने में कोर्ट के सुझाव महत्वपूर्ण होला।