For the best experience, open
https://m.khabarbhojpuri.com
on your mobile browser.
Advertisement

भोजपुरी कविता, कुबेरनाथ मिश्र 'विचित्र' के मुक्तक...

11:05 AM Nov 06, 2023 IST | Minee Upadhyay
भोजपुरी कविता  कुबेरनाथ मिश्र  विचित्र  के मुक्तक
Advertisement

Advertisement

अधिकतर मंच कवि लोग के तरह इनकर भी एगो उपनाम रहे - 'विचित्र'। बाकिर ई तखल्लुस खाली नाम में ना रहे। उहाँ के एगो अद्भुत कवि रहले, जेकर व्यक्तित्व एके नाम आ धर्म के रहे।

उनुका अजीबोगरीब पहनावा से पहचानल जात रहे। माथा पs गांधी के टोपी, गोड़ पs चप्पल, कंधा पs लटकल बैग, शंख-पत्रा आ बैग में उनकर छपल किताब आ बिना छपल पाण्डुलिपि। हाथ में छतरी, गरदन में रुद्राक्ष माला, चेहरा पs दिव्य चमक, धोती-कुर्ता आ गमछा। जब ऊ कविता पढ़े खातिर मंच पs उठत रहले तs लोग पेट पकड़ के हँसे लागे।

रउआँ अइतीं त अँगना अँजोर हो जाइत।

हमार मन बाटे साँवर ऊ गोर हो जाइत।

जवन छवले अन्हरिया के रतिया बाटे।

तवन रउरी मुसुकइला से, भोर हो जाइत।।

जवना सरसों से भूतवा झराए के बा।

भूत ओही सरसउआ में घूसल बाटे।

जवना नेता के दुखवा सुनावे के बा।

लोग ओही के चमचा के चूसल बाटे।।

Tags :
Advertisement