गोरखपुर: सामाजिक समरसता के परब हs छठ पूजा
गोरखपुर। 'भोजपुरी संगम' के 177 वीं मासिक 'बइठकी' छठ परब पs केंद्रित रहल। बइठकी के पहिला सत्र में 'लोक परंपरा में छठ' विषय प चरचा भइल। एमे भाग लेत ख्यातिलब्ध साहित्यकार चन्देश्वर 'परवाना' कहलें कि छठ बरत में देवरूप सूर्य के उपासना के पहिला प्रमाण ॠग्वेद में मिलेला आ वैज्ञानिक रूप में ई सूर्य के पराबैगनी किरणन से होखे वाला नुकसानो से बचावेला। ई एगो सामाजिक समरसता छके परब हs।
चरचा क्रम में वरिष्ठ कवि सुभाष चन्द्र यादव कहले कि छठ परब सामूहिक आ सांगठनिक रूप में मनावल जाला, जवन बिहार से सुरू होके समूचा देस में होत अमेरिका तक पहुंच गइल बा।
दूसरका सत्र के सुरुआत अरविंद 'अकेला' के वाणी वंदना "ज्ञान के दिअनवा जरावऽ ए माई..." से भइल। एह क्रम के आगे बढ़ावत नवहा रचनाकार अजय यादव सोहर प्रस्तुत कइके। राम समुझ साँवरा "मन लागे नाहीं अब साधूगीरी में" पढ़के वाह-वाही बटोरलें। सरस गीतकार सुधीर श्रीवास्तव 'नीरज' के रचना "नेहिया के दियना बुताए लागल सगरी" आ एही भाव पs आपन रचना पढ़के अरविंद 'अकेला' गोष्ठी के उँचाई प्रदान कइलें। संयोजक कुमार अभिनीत की रचना "सून परल सगरी सिवान..." सराहल गइल।
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अवधेश शर्मा 'नंद' अपना दोहन में छठ मइया के इयाद करत "शुरू नहा खा होत है, छठ मइया का पर्व" प्रस्तुत कइलें। सुभाष यादव के कविता "गांव से चिट्ठी आइल बा...' गँवई पारिवारिक बेवस्था के सही तस्वीर प्रस्तुत कइलें। चन्देश्वर 'परवाना' के छठ गीत "आईं हमरे अँगना दुअरवा हे छट्ठि माई" सबका के लुभवलें। कृष्ण कुमार श्रीवास्तव के भोजपुरी गजल "गाँव के बाति हमरे निराला हवे" आकर्षित कइलस। चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा 'अकिंचन' आ सत्य नारायण पथिक ने अपना काव्य प्रस्तुति से गोष्ठी के समृद्ध कइल लो।
बइठकी के अध्यक्षता चन्द्रगुप्त प्रसाद वर्मा 'अकिंचन' आ संचालन अवधेश शर्मा 'नंद' कइलें। एकरा अलावे रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी आ डॉ. विनीत मिश्र के उपस्थिति महत्वपूर्ण रहल। संस्था के संरक्षक इं. राजेश्वर सिंह सब लोगन के प्रति आभार व्यक्त कइलें। अंत में सुप्रसिद्ध लोकगायिका स्व. शारदा सिन्हा के श्रद्धांजलि दिहल गइल।