सामुदायिक लाभ खातिर निजी संपत्ति के फेर से बाँटे के याचिका पर अनुसूचित जाति में सुनवाई शुरू हो गइल बा
सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के ई तय करे के पड़ी कि का राज्य नीति के ई निर्देशक सिद्धांत प्रावधान सरकार के अधिका सामान्य भलाई खातिर समुदायन के भौतिक संसाधनन के निजी स्वामित्व वाली संपत्ति में फेर से बाँटे के अनुमति देत बा?
संविधान के अनुच्छेद 39 (ख) के व्याख्या पर सुप्रीम कोर्ट के 9 न्यायाधीश के पीठ सुनवाई शुरू क देले बा। अइसने में सवाल बा कि का सरकार कवनो निजी संपत्ति के फेर से बंटवारा समुदाय के भलाई खातिर कर सकेले? अइसने में इ मुद्दा कानूनी से जादे राजनीतिक बा। हालांकि जवना सवाल प सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करतिया उ बहुत पुरान बा। बाकिर फिलहाल देश के चुनावी माहौल में ई गरम हो गइल बा काहे कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद कुछ दिन पहिले एकर जिक्र कइले रहले ।
ओह दौरान राहुल गांधी कहले रहले कि पिछड़ा जाति, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक आ अउरी जाति के आबादी के सही जानकारी पावे खातिर सबसे पहिले हमनी के जाति जनगणना करब जा। एकरा बाद वित्तीय आ संस्थागत सर्वेक्षण शुरू हो जाई । एकरा बाद हमनी के भारत के धन, नौकरी आ बाकी कल्याणकारी योजना के ए वर्ग के आबादी के आधार प बांटे के ऐतिहासिक काम उठावे के होई।
पीएम नरेंद्र मोदी राहुल गांधी के बयान प जवाबी हमला कइले आ आरोप लगवले कि कांग्रेस फेर से बंटवारा खातीर नागरिक के निजी संपत्ति छीन ली। आ पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के 2006 के भाषण के भी हवाला दिहले।
सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के ई तय करे के पड़ी कि का राज्य नीति के ई निर्देशक सिद्धांत प्रावधान सरकार के अधिका सामान्य भलाई खातिर समुदायन के भौतिक संसाधनन के निजी स्वामित्व वाली संपत्ति में फेर से बाँटे के अनुमति देत बा?
22 के सुनवाई भइल एह 31 साल पुरान मामिला के सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड आ न्यायाधीश हृषिकेश राय, न्यायमूर्ति बीवी नगरथना, जस्टिस एस धुलिया, जस्टिस जेबी परदीवाला, जस्टिस आर बिंदल, जस्टिस एससी शर्मा आ जस्टिस एजी मसिह के पीठ करत बिया एक साल पहिले साल 2002 में सात जज के संविधान पीठ ए मामला के 9 जज के पीठ में भेजले रहे। दरअसल एकर व्याख्या जस्टिस वी आर कृष्ण अय्यर के अल्पसंख्यक दृष्टिकोण से उपजल बा कि सामुदायिक संसाधन में निजी संपत्ति शामिल बा|
ध्यान देवे वाला बात बा कि अनुच्छेद 39 (ख) में प्रावधान बा कि राज्य अपना नीति के इ सुनिश्चित करे के ओर निर्देशित करी कि समुदाय के भौतिक संसाधन के मालिकाना हक अवुरी नियंत्रण के अइसन तरीका से बांटल जाए, जवना से आम भलाई के सबसे निमन सेवा होखे।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कहले कि अदालत के सोझा एकमात्र सवाल अनुच्छेद 39 (बी) के व्याख्या बा, अनुच्छेद 31 सी के ना, जवना के वैधता 1971 में 25वां संवैधानिक संशोधन से पहिले मौजूद रहे, जवना के केसवानंद में ठोकर मार दिहल गइल रहे भारती केस 13 -जज के पीठ के समर्थन।
सीजेआई चंद्रचूड एह बात से सहमत हो गइलन आ बतवले कि अनुच्छेद 39(बी) के व्याख्या 9 जज के पीठ से काहे करे के जरूरत बा । हालांकि 1977 में रंगनाथ रेड्डी में बहुमत स्पष्ट कईले रहे कि समुदाय के भौतिक संसाधन में निजी संपत्ति शामिल नइखे, बाकि 1983 में संजीव कोक में पांच जज के पीठ जस्टिस अय्यर प भरोसा कइलस, जवना में इ अनदेखी कइल गइल कि इ अल्पसंख्यक के विचार।
एकरा प सीजेआई कहलस कि एही बीच 1997 में मफतलाल इंडस्ट्रीज मामला में सुप्रीम कोर्ट के राय रहे कि अनुच्छेद 39(बी) के व्याख्या खातीर नौ जज के पीठ के व्याख्या करे के होई। मफतलाल मामला में सुप्रीम कोर्ट कहले रहे कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधन में निजी स्वामित्व वाली चीज़ के शामिल करे के व्यापक विचार के स्वीकार कइल मुश्किल बा।
पीठ पूछलस कि 1960 के दशक में फालतू खेती के जमीन गरीब किसान के बीच कईसे बांटल गईल। एकरा संगे-संगे याचिकाकर्ता के ओर से तर्क दिहल गईल कि सामुदायिक संसाधन में निजी स्वामित्व वाली संपत्ति के कबो शामिल नईखे कईल जा सकत। उ जस्टिस अय्यर के एह दृष्टिकोण के मार्क्सवादी समाजवादी नीति के प्रतिबिंब बतवले, जवना के कवनो लोकतांत्रिक देश में कवनो जगह नईखे जवना के संचालन नागरिक के मौलिक अधिकार के प्राथमिकता देवे वाला संविधान से होखेला।