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हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण फैसला : बेटी के बियाह तक पिता से भरण-पोषण मिले के अधिकार बा, पिता के याचिका खारिज

09:22 PM Aug 16, 2024 IST | Raj Nandani
हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण फैसला   बेटी के बियाह तक पिता से भरण पोषण मिले के अधिकार बा  पिता के याचिका खारिज
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यूपी के हाथरस जिला के निवासी अवधेश सिंह के बियाह 1992 में उर्मिला देवी से भइल रहे। 25 जून 2005 के उर्मिला देवी एगो बेटी के जन्म दिहली। परिवार अपना बेटी के नाम गौरी नंदिनी रखले। साल 2009 में अवधेश आ उर्मिला के संबंध बिगड़ गइल। अवधेश उर्मिला के बेटी के संगे घर से बहरी फेंक देले। एकरा बाद उर्मिला हाथरस कोर्ट में भरण पोषण खातिर केस दर्ज करवली।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट अपना एगो महत्वपूर्ण फैसला में कहलस कि जब तक बेटी के बियाह ना हो जाई तब तक हिन्दू पिता के अपना बेटी के खर्चा उठावे के पड़ी। हाईकोर्ट अपना फैसला में कहले बा कि बेटी के वयस्क होखे के आधार पs पिता ओकरा भरण-पोषण के खर्चा के रोक नइखन सकत। ए मामिला पs टिप्पणी करत हाईकोर्ट कहले बा कि देश के कानून के सोझा धार्मिक शास्त्र में दिहल नियम के मुताबिक हिन्दू आदमी के हमेशा से अपना संतान के भरण-पोषण खातीर नैतिक रूप से जिम्मेदार मानल गइल बा। एही आधार पs कोर्ट हाथरस के अवधेश सिंह के याचिका के खारिज कs देले बिया।

यूपी के हाथरस जिला के निवासी अवधेश सिंह के बियाह 1992 में उर्मिला देवी से भइल रहे। 25 जून 2005 के उर्मिला देवी एगो बेटी के जन्म दिहली। परिवार अपना बेटी के नाम गौरी नंदिनी रखले। साल 2009 में अवधेश आ उर्मिला के संबंध बिगड़ गइल। अवधेश उर्मिला के बेटी के संगे घर से बहरी फेंक देले। एकरा बाद उर्मिला हाथरस कोर्ट में भरण पोषण खातिर केस दर्ज करवली। परिवार न्यायालय के आदेश में कहल गइल बा कि अवधेश सिंह के हर महीना अपना पत्नी उर्मिला के 25 हजार रुपिया आ बेटी गौरी नंदिनी के बीस हजार रुपिया भरण पोषण खातिर देबे के पड़ी।

अवधेश सिंह हाईकोर्ट में चुनौती दिहले

एही बीच पत्नी उर्मिला देवी भरण-पोषण के खर्चा में बढ़ोतरी के मांग करत अलग से मामला दर्ज करवली। अवधेश सिंह इलाहाबाद हाईकोर्ट में एकरा के चुनौती देले। अवधेश सिंह के याचिका में इहो कहल गइल रहे कि अब उनकर बेटी बड़ हो गइल बिया । ऊ 18 साल के हो गइल बाड़ी, एहसे अब ऊ उनकर भरण-पोषण नइखन कs सकत। दूसरा ओर पत्नी-बेटी के ओर से कहल गइल कि हिन्दू गोद लेवे आ भरण-पोषण अधिनियम 1956 के धारा 20 के मुताबिक हिन्दू बेटी के तब तक भरण-पोषण के हकदार बा, जब तक ऊ बालिग ना हो जाई, बलुक जब तक बियाह ना हो जाई, तब तक भरण-पोषण के हकदार बा।

ई कवनो हिन्दू के कानूनी जिम्मेदारी बा

न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम के एकल पीठ अवधेश सिंह आ पत्नी उर्मिला के याचिका पs दिहल 24 पन्ना के फैसला में मुख्य रूप से कहले बिया कि कानून के सोझा हिन्दू धार्मिक शास्त्र में दिहल नियम के मुताबिक कवनो हिन्दू पुरुष अपना... बुजुर्ग माता-पिता के नैतिक आ कानूनी दुनु तरह से जिम्मेदार ठहरावल जात रहे कि ऊ अपना पिता, पत्नी आ लइकन के भरण पोषण करस । हाईकोर्ट अपना फैसला में हिन्दू विवाह अधिनियम 1956 के धारा 20 (3) के भी हवाला देले बा, जवना में कहल गइल बा कि कवनो हिन्दू के कानूनी जिम्मेदारी बा कि ऊ अपना अविवाहित बेटी के रखरखाव करस।

कोर्ट परिवार अदालत के फैसला के सही ठहरवलस

ए तर्क के आधार पs इलाहाबाद हाईकोर्ट हाथरस फैमिली कोर्ट के पत्नी आ बेटी के भरण पोषण भत्ता देवे के फैसला के सही ठहरवले बिया। हालांकि पत्नी आ बेटी के भरण-पोषण भत्ता बढ़ावे के मांग के मामला में हाईकोर्ट दखल देवे से इनकार कs देलस। कोर्ट के कहनाम बा कि, जदी पत्नी खुद अपना आ अपना बेटी के भरण-पोषण भत्ता बढ़ावल चाहतिया तs हाथरस के फैमिली कोर्ट में आवेदन कs सकतारी।

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