Kargil Vijay Diwas: भारत माई के ओह वीर बेटा के कहानी, जे कहत रहले - 'हमरा राह में मौत आई तs हम ओकरो के मार देम , जानी उत्तरप्रदेश के वीर सपूत के कहानी
कारगिल विजय दिवस: जाड़ा में भारी बर्फबारी के चलते भारत-पाकिस्तान के सेना उतरत रहे ,बाकी पाकिस्तान धोखा देके 1998-99 के जाड़ा में घुसपैठिया के भेस में पाकिस्तानी जवान भारत के सीमा में घुस गइल। जाड़ा में पाकिस्तानी घुसपैठिया ऊँच पहाड़ी इलाका में आपन बंकर बनावत रहे। ऊ अइसन जगह पs कब्जा कs लेलख, जहां से ओकरा भारतीय सैनिक के आवाजाही आसानी से देखाई देत रहे। जब भारतीय सेना के एह बारे में पता चलल तs ऑपरेशन विजय शुरू हो गइल। देश के वीर सपूत ऑपरेशन विजय में सब कुछ जोखिम में डाल के करिगल पहाड़ी घुसपैठियन से साफ कर दिहले। अइसने एगो बहादुर योद्धा रहले कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय। आज आईं जाने के कप्तान मनोज कुमार पाण्डेय की कहानी।
कप्तान मनोज कुमार पाण्डेय के रहले?
कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय गोरखा राइफल्स के पहिला बटालियन के वीर योद्धा रहले। बहादुर योद्धा के सबसे बढ़िया पहचान ओकर बटालियन आ ओकरा कइल काम से होला। कप्तान मनोज कुमार पाण्डेय भी 1999 के कारगिल युद्ध में भाग लेले रहले ताकि पाकिस्तानी घुसपैठियन के छेद से बाहर निकाल के चुन चुन के मार सकस। कैप्टन मनोज कुमार पांडेय के बहादुरी देख पाकिस्तानी घुसपैठियन के 11 जून 1999 के बटालिक सेक्टर छोड़ के भागे के पड़ल। इनके नेतृत्व में 3 जुलाई 1999 के भोर में भारतीय सेना जौबर टॉप आ खलूबर टॉप पर फिर से कब्जा कs लिहलख। खलूबर टॉप पर कब्जा करे के लड़ाई में कप्तान मनोज पाण्डेय बहुते घायल हो गइलन आ एहिजा पहाड़ी के चोटी पर आपन आखिरी साँस लेलन । इनके मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा परवीर चक्र से सम्मानित कइल गइल।
' जब अदमी कहे कि मौत से डेर नइखे तs या तs झूठ बोलत बा या ऊ गोरखा ह...'
फील्ड मार्शल सैम मानेक्सॉ ई बात कहले रहले। उनकर एह शब्दन के 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय लागू कइले रहले। उनकर देह दुश्मन के गोली से भरल रहे, बाकी ऊ मौत से आपन आंख ना छिपवले, बलुक दुश्मन के आंख में देख के मार देले। उनकर अँगुरी बंदूक के ट्रिगर से आखिरी साँस तक ना हिलल। मोर्चा से अपना टीम के नेतृत्व करत ऊ अकेले दुश्मन के तीन गो बंकर के तबाह कर दिहलन।
कारगिल विजय दिवस : 1999 के कारगिल युद्ध के बहुत कहानी बा, जवन आज भी लोग के प्रेरित करेला। एही तरह के कहानी कैप्टन मनोज पांडे के बा जे कहत रहले कि जदी मौत हमरा राह में आ गइल तs हम ओकरो के मार देम।
पढ़ीं एह वीर बेटा के पूरा कहानी।
जब कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय 1999 के कारगिल युद्ध लड़त रहले तs उनकर उमिर महज 24 साल रहे। बाकिर देशभक्ति के भावना अइसन रहे कि दुश्मन के आत्मा तक उनका नाम से काँप गइल। एही से देश खातिर आपन परम बलिदान देवे से पहिले ऊ कहले कि, ' जदी अपना देशभक्ति साबित होखे से पहिले हम मर जाईब तs हम वादा करतानी कि मौत तक मार देब...'
कप्तान मनोज पाण्डेय सीतापुर के बेटा रहले।
कैप्टन मनोज पाण्डेय उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिला के रुधा नाम के गाँव के बेटा रहले। 25 जून 1975 के ब्राह्मण परिवार में जनमल मनोज पांडे के शुरुआती बचपन गाँव में बीतल, बाकी बाद में उनकर परिवार लखनऊ आ गइल। ऊ बचपन से बहुत उज्ज्वल रहले। सैनीक स्कूल से शिक्षा लिहलें आ बाद में सेना में कैरियर बनावल आसान हो गइल। ऊ खुद सैनीक स्कूल से सेना के तैयारी करे लगले।
परमवीर चक्र जीते खातिर सेना में शामिल हो गइले
बारहवीं के बाद जब ऊ एनडीए के परीक्षा पास कइले तs इंटरव्यू में उनका से एगो खास सवाल पूछल गइल। ई सवाल रहे – रउरा सेना में काहे भर्ती होखे के चाहत बानी? मनोज पाण्डेय जी एह सवाल के जवाब देले - परमवीर चक्र जीते खातिर। अंत में ऊ देश खातिर आपन जान दे दिहलें आ मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित भइलें। एनडीए में चुनल गइला का बाद मनोज पुणे का लगे खडकवासला में स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी से प्रशिक्षण लिहलन।
कप्तान मनोज पाण्डेय कारगिल से पहिले सियाचेन में रहले।
प्रशिक्षण के बाद मनोज कुमार पाण्डेय के 11 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट में तैनाती हो गइल। उनकर रेजिमेंट ओह घरी जम्मू कश्मीर में सेवारत रहे। शुरू से ही ऊ हमला के योजना बनावे के तरीका, हमला करे के तरीका आ गुरिल्ला युद्ध में दुश्मन के कइसे हरावे के तरीका सीखे लगले। कारगिल भेजला से पहिले करीब डेढ़ साल तक सियाचेन में सेवा देले रहले आ अब शांति के समय में उनकर तैनाती पुणे में होखे वाला रहे। बाकी कारगिल में घुसपैठ के खबर के बीच उनका के बटालिक सेक्टर जाए के कहल गइल।
कप्तान मनोज पाण्डेय एह मौका के फायदा उठवले
बटालिक जाए के खबर से कप्तान मनोज पाण्डेय निराश ना भइले, बलुक ऊ अइसे खुश रहले जइसे एह मौका के इंतजार करत रहले। ऊ बहुत बहादुरी से अपना टीम के नेतृत्व कइले। पाकिस्तानी घुसपैठियन से लगभग दू महीना के टकराव में ऊ कुकार्थम, जुबरतोप जइसन कई गो चोटी से दुश्मन के हरा दिहले। 3 जुलाई 1999 के उ खलुबर चोटी पs कब्जा करे खातीर आगे बढ़त रहले। जइसे-जइसे ऊ लोग आगे बढ़ल, दुश्मन के हवा लाग गइल आ पहाड़ी के पीछे लुकाइल घुसपैठिया लोग अंधाधुंध गोलीबारी करे लागल।
दुश्मन के ओर से फायरिंग देख के कैप्टन मनोज पांडे रात होखे के इंतजार कइले। जब अन्हार हो गइल त ऊ अपना साथियन से बतियावत दू गो अलग अलग रास्ता से आगे बढ़े के रणनीति बनवले। उनकर रणनीति काम कइलस आ पाकिस्तानी घुसपैठिया उनका जाल में फंस गइल। मौका मिलल कप्तान मनोज पांडेय दुश्मन के बंकर पs हमला कs के उड़ावे लगले। दुश्मन के कुछ समझे से पहिले तीन बंकर तबाह हो गइल रहे।
वीर की शहादत के बाद तिरंगा फहरल
अबहीं ले ओह लोग के काम पूरा ना भइल रहे, जइसहीं ऊ लोग चउथा बंकर के नष्ट करे खातिर आगे बढ़ल... पाकिस्तानी घुसपैठिया ओह लोग पर गोली चला दिहलख ।कप्तान मनोज पांडे के खून बह के मौत हो गइल। उनकर साथी लोग उनका के ढक के कहले कि आगे मत बढ़ीं, बाकी ऊ सहमत ना होखे वाला रहले। ऊ चाहत रहले कि खुद खलूबर के चोटी पs तिरंगा झंडा फहरावे। कैप्टन मनोज पांडेय के शहादत के बाद उनकर साथी पाकिस्तानी घुसपैठियन के पीछा कs के हत्या कs देले। एह तरह से खलूबर टॉप पर एक बेर फेरु तिरंगा फहरा दिहलस। बाकिर देश एगो बहादुर सिपाही के गँवा दिहलस।