अतवारी छौंक: 'बात कुछ पुरनका दौर के' गैराज में काम करत लिखले कविता, पहिलका फिल्मी गीत से ही भइले मशहूर 'गुलज़ार'
खबर भोजपुरी रउरा लोग के सोझा एगो नया सेगमेंट लेके आइल बा , जवना में रउरा के पढ़े के मिली फिलिम इंडस्ट्री से जुड़ल रोचक कहानी आ खिसा जवन बितsल जमाना के रही।
आजू पढ़ी गुलज़ार के गीत के सफर के बारे में....
गुलज़ार के जनम 18 अगस्त 1934 के पाकिस्तान के 'दीना' गाँव में भइल रहे। गुलज़ार के मूल नाम 'सम्पूरण सिंह कालरा' हs। जवना इलाका में गुलज़ार के जनम भइल रहे ऊ झेलम जिला में आवेला. जहाँ पंजाबी आ उर्दू भाषा बोलल जाला। दीना के एह गाँव में आजुओ एगो प्राइमरी स्कूल मौजूद बा. जहाँ उहाँ के प्राथमिक शिक्षा मिलल। गालिब के कविता के माध्यम से उर्दू अदब बढ़ल, बाकिर प्रेम बंगाली भाषा से रहे। गुलज़ार शुरू से ही बंगाली साहित्य के दीवाना रहले।
बंटवारा के बाद गुलज़ार दीना छोड़ के दिल्ली आ गईले। जहाँ गुलज़ार अपना जीवन के कुछ महत्वपूर्ण साल बितवले। एकरा बाद उs मुंबई चल गईले। मुंबई के वर्ली इलाका में उनकर नया घर मोटर गैराज बन गइल.
एह मोटर गैराज में गुलज़ार एक्सीडेंटल गाड़ी के डेंट निकाल के रंगाई-पोताई करत रहले। बाकिर ई उनकर पसंदीदा काम ना रहे, किताब पढ़े में उनकर रुचि अधिका रहे।
इब्ने सफी, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, बंकिम चंद्र चटर्जी होखे भा रवींद्र नाथ टैगोर, उs सब के दीवाना रहले। गुलज़ार के जब भी गैराज के काम से समय मिलत रहे तs उs नॉबेल पढ़त रहले। गुलज़ार रवीन्द्र नाथ टैगोर के साहित्य के बड़ा प्रशंसक रहले। गुलज़ार के उपन्यास पढ़े के गति एतना तेज रहे कि एह किताबन के किराया पर देवे वाला दोकानदार भी घबरा के हाथ जोड़ लेत रहे।
साहित्य आ कविता के समझ के परिपक्व करे खातिर ऊ प्रगतिशील लेखक संघ में शामिल भइलें। जहाँ उनकर जीवन एगो महत्वपूर्ण मोड़ ले लिहलस।
इहाँ उनुकर मुलाकात लोकप्रिय गीतकार शैलेन्द्र से भईल। शोमैन राज कपूर शैलेन्द्र के कविराज कहत रहले. शैलेन्द्र राज कपूर के पसंदीदा गीतकार रहले. इहे कारण रहे कि उs राज कपूर खातिर कई गो सुपरहिट गाना लिखले।
ई साल 1963 के हs जब मशहूर निर्माता आ निर्देशक बिमल राय फिल्म बनावत रहले. जेकर नाम रहे ‘बंदिनी’. बिमल राय के गीतकार शैलेन्द्र से कवनो मुद्दा पss झगड़ा हो गइल. शैलेन्द्र गुलज़ार के प्रतिभा के अहसास कs लेले रहले।
एक दिन शैलेन्द्र गुलजार के बिमल राय से मिले के कहले। गुलज़ार जब बिमल राय के ऑफिस पहुंचले तs बिमल राय गुलज़ार के गंभीरता से ना लिहले। बाकिर जब उs गीत लिख के देले तs उs स्तब्ध रह गईले अवुरी गुलज़ार के प्रतिभा से एतना प्रभावित भईले कि गुलज़ार से पूछले कि उs का करेनी, फेर गुलज़ार कहले कि हम मोटर गैराज में काम करेनी।
एही पs बिमल राय कहले- 'उहाँ जाए के कवनो जरुरत नइखे, गैराज में जाके आपन समय मत गँवाईं।'
बंदिनी में उहाँ के लिखल गीत “मोरा गोरा अंग लइ ले, मोहे श्याम रंग दइ दे”” बहुत मशहूर भइल। एकरा बाद गुलज़ार पीछे मुड़ के ना देखले। गुलज़ार के कलम पिछला चार दशक से सक्रिय बा।
उहे बांकपन आजुओ गुलज़ार के लिखल गीत, गजल, शेर, कहानी आ त्रिवेणी में महसूस होला जवन पहिला बेर ‘बंदिनी’ के गीतन में महसूस कइल गइल. धुन, लय आ ताल के समय से मिला के ऊ नया पीढ़ी पs आपन छाप छोड़े में सफल भइल बाड़न. अगर रउरा कम शब्दन में कुछ कहे के बा तs गुलज़ार से बढ़िया के हो सकेला.
"नजर में रहते हो जब नजर नहीं आते. ये सुर बुलाते हैं जब तुम इधर नहीं आते." बंटवारा के पीड़ा के एह तरह से बखान खाली गुलज़ार कs सकेले. गुलज़ार जब भारत के बात करेले तs कुछ लाइन में भूत, वर्तमान आ भविष्य के आँख के सोझा रख के कहेले-
हथेलियों में भरें धूप और उजाला करें,
उफक पे पांव रखो और चलो अकड़ के,
चलो फलक पकड़ के उठो और हवा पकड़ के चलो,
तुम चलो तो हिंदुस्तान चले।
अइसन बात खाली उहे कह सकेला जे एह देश के अपना भीतर गले लगा लिहले बा. गुलज़ार के परिचय खाली अतने नइखे कि ऊ फिलिमन में लिखेलें.
उनकर एगो परिचय इहो होखे के चाहीं कि ऊ भारत के भाषा, संस्कृति आ शिष्टाचार के नुमाइंदगी करे वाला व्यक्ति हउवें. जे आपन विचार राखे खातिर अलग अलग मीडियम के इस्तेमाल करेले, आ अइसन करेले कि सामने वाला आदमी प्रभावित रहे बिना ना रह सके. जब ऊ कवनो लेखक के रचना के अनुवाद करेलें तs ऊ अलगे लउकेला.
उमिर के एह अवस्था में भी 'गुलज़ार' गुलजार बाड़े। इहे उनकर जिंदादिली हs। इहो उनकर सबसे बड़ विशेषता हs। उनुका कवनो चुनौती से डर ना लागेला, उनुकर कविता भा गीत हमेशा आशा के पेश करेला। सिनेमा में एह परंपरा के आगे बढ़ावे वाला लोग के सूची में गुलज़ार सबसे आगे देखल जा रहल बाड़े, जवना के नींव बिमल राय बनवले रहले। गुरु दत्त एकरा के उपजाऊ शक्ति देले। शैलेन्द्र उनुका के खूबसूरती दिहलन आ हृषिकेश मुखर्जी ओकरा के अपना हुनर से संवरले.
गुलज़ार आम बोलल शब्दन के साथे अइसन व्यवस्था प्रस्तुत करेले जवन श्रोता लोग के बरिसन ले मोहित राखेला ,जईसे..
जंगल जंगल बात चली है पता चला है
जंगल जंगल बात चली है पता चला है
अरे चड्डी पहन के फूल खिला है फूल खिला है
आ फेर-
मास्टरजी की आ गयी चिट्ठी
चिट्ठी में से निकली बिल्ली
अरे चिट्ठी में से निकली बिल्ली
एह गीत के देखीं-
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
वो सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
वो और मेरे इक ख़त मैं लिपटी रात पड़ी है
वो रात भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो
वो रात भुला दो, मेरा वो सामान लौटा दो
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है
सबसे जादा फिल्मफेयर अवार्ड जीते के रिकार्ड भी गुलज़ार के बा 'स्लमडॉग मिलियनेयर' के गाना 'जय हो' भी गुलज़ार के लिखल रहे। एकरा खातिर संगीतकार एआर रहमान के ऑस्कर अवार्ड भी मिलल।
गुलज़ार के 2004 में पद्म भूषण से सम्मानित कइल गइल; आ 2013 में दादासाहेब फाल्के अवार्ड से सम्मानित भइल. गुलज़ार अब भारत के सबसे बड़ साहित्यिक पुरस्कार 2023 के ज्ञानपीठ पुरस्कार के भी प्राप्तकर्ता बाड़े।
कवनो विधा होखे, गुलज़ार हर विधा में शत-प्रतिशत सफल बाड़े। भले ही उs खाली बाल गीत होखे। गुलज़ार सृष्टि के हर विधा के समृद्ध कइले बाड़न. गुलज़ार सिल्वर स्क्रीन पs कैमरा के माध्यम से कहानी सुनावे में भी माहिर बाड़े। परिचय, कोशिश, आंधी, मौसम, अंगूर, इजाजत, लेकिन, माचिस वगैरह अइसन फिलिम हs जवना के कबहूँ ना भुलावल जा सके. एहमें कवनो संदेह नइखे कि गुलज़ार एगो विलक्षण प्रतिभा हउवें. उनकर प्रतिभा एतना बड़हन रहे कि ई देख के अचरज भइल कि कइसे एक आदमी में एतना गुण हो सकेला.
गुलज़ार आजुओ लिखत बाड़न. गुलज़ार के शब्दन के सफर गीत, कविता, हर विधा में जारी बा। जइसे कि गुलज़ार कहल चाहत बाड़न कि 'तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूं मैं, तेरे मासूम सवालों से परेशान हूं मैं….’