साँप के जीभ काहे दू भाग में बाँटल जाला? महाभारत के कहानी में एगो रहस्य छिपल बा, ई बात विज्ञान से अलग बा
दुनिया भर के जीवविज्ञानी साँप पs शोध कइले। ई जाने के कोशिश कइनी कि साँप के दू गो जीभ काहे होला? शोध के अलग-अलग कारण सामने आइल, बाकी एकर धार्मिक कारण भी बा, जवना के उल्लेख महाभारत में बा। एकरा बारे में बहुत कम लोग के मालूम बा।
दुनिया में साँप के अलग-अलग प्रकार बा। हर आदमी के आपन अलग अलग विशेषता होला। बाकि, एगो चीज़ बा जवन सब सांप में आम देखल जाला, ऊ हs जीभ। साँप के जीभ आगे से दू भाग में बाँटल होला। साँप के जीभ सदियन से वैज्ञानिकन के साथे-साथे लोग के चर्चा के विषय रहल बा, बाकी एकर धार्मिक कारण भी बा।
एह संबंध में हजारीबाग के साँप मित्र मुरारी सिंह बतावत बाड़न कि साँप के दू भाग में बाँटे के पीछे एगो मशहूर कहानी बा । एकर वर्णन वेदव्यास जी के लिखल महाभारत में मिलेला। कहानी के मुताबिक महर्षि कश्यप के तेरह पत्नी रहली। एह 13 में से एगो पत्नी के नाम कदरू आ दूसरकी के नाम विनिता रहे।
मानल जाला कि कदरू सब साँप के जनम देले रहले। ई सब सांप कदरु आ महर्षि कश्यप के बेटा-बेटी रहले। जबकि पत्नी विनीता के महर्षि कश्यप से बेटा गरुड़ मिलल। एक बेर कदरू आ विनीता जंगल में एगो सफेद घोड़ा देखली तs दुनु जानी के ओह घोड़ा से प्यार हो गइल।
एकरा बाद दुनो लोग के बीच बहस भइल कि घोड़ा के पूंछ सफेद बा कि करिया। बहस के बाद दुनो लोग के बीच दांव लगावल गइल कि जेकर बात सही होई उहे दांव जीती। हारल आजीवन गुलाम बनल रही। एहमें कुदरू कहली कि घोड़ा के पूंछ करिया होला जबकि विनीता कहली कि घोड़ा के पूंछ गोर होला ।
एकरा बाद कदरू अपना लइकन के आपन रूप सिकुड़ के घोड़ा के पूंछ में लपेटे के आदेश दिहली, जेहसे कि दूर से देखल जाव कि घोड़ा के पूंछ उज्जर ना होके करिया होखे । बाकी, कदरू के लईका ई काम करे से इनकार कs देले, जवना के बाद कदरू अपना बच्चा के राख में सिमट जाए के गारी देवे लगली। डर से लइका-लइकी घोड़ा के पूंछ से चिपक जाए खातिर तइयार हो गइलें।
विनीता दांव हार गइली आ शर्त के हिसाब से ऊ गुलाम बने के बात मान लिहली । विनीता के बेटा गरुड़ के जब एह बात के पता चलल तs ऊ अपना साँप भाई लोग के लगे जाके अपना महतारी के नौकरानी से मुक्त करावे के कहले। उनकर भाई लोग एगो शर्त रखल कि जदी ऊ स्वर्ग से अमृत के घड़ा ले आई तs ओकर माई के गुलामी से मुक्ति मिल जाई।
एकरा बाद गरुड़ स्वर्ग से अमृत के घड़ा लेके धरती पs पहुंचले आ ओकरा के कुश के घास पs रख देले। भाई लोग से कहले कि अमृत के सेवन करे से पहिले जाके पोखरा में नहा लीं। एही समय में भगवान इंद्र अमृत के पीछा करत धरती तक पहुंचले आ अमृत के कलश उठा के फेर से स्वर्ग में लवट गइले। जब सब साँप पोखरा में नहा के लवटल त देखले कि कलश ना रहे। जवना के वजह से ऊ कुश के चाटे लगले कि इहाँ अमृत के कुछ बूंद गिर गइल होई, जवना के चलते उनकर जीभ कुश से दु भाग में कट गइल।
साँप मित्र मुरारी सिंह आगे बतावत बाड़े कि एकरा अलावे बहुत जीवविज्ञानी के दावा बा कि सांप अपना जीभ के एक हिस्सा में गंध के संग्रहित कs लेवेला आ दूसरा हिस्सा के इस्तेमाल खाना के नीचे ले जाए खातीर करेला। एह से साँप अन्य जीव से अलग हो जाला।