Bhojpuri Sangam: भोजपुरी रचना कर्म के समकालीनता के लेके सचेत रहला के जरूरत : प्रो. राजेश
गोरखपुर। भोजपुरी में फूहड़ता एगो कलंक हs। भोजपुरी रचना कर्म के समकालीनता के लेके सचेत रहला के जरूरत बा। तबे ई आउर बाकी विकसित भाषा के बराबर खड़ा रह पाई। ई बात भोजपुरी संगम (Bhojpuri Sangam) के 176 वीं 'बइठकी' के दौरान प्रो. राजेश कुमार मल्ल कहलें। सुभाष चंद्र यादव के अध्यक्षता आ अवधेश शर्मा 'नंद' के संचालन में आयोजित बइठकी के मेजबानी संयोजक कुमार अभिनीत अपना खरैया पोखरा, बशारतपुर गोरखपुर इस्थित आवास पs कइलें।
बइठकी के पहिला सत्र में अजय कुमार यादव के भोजपुरी कवितन के समीक्षा कइल गइल। समीक्षा क्रम के सुरुआत करत डॉ. नवनीत कहलें कि गँवई सभ्यता के असली पहचान ओकर श्रमशीलता आ सामूहिकता हs, ई संवेदना अजय कुमार यादव के कविता में मवजूद बा। ऊ अजय के सपाटबयानी से पैदा रचनात्मक ह्रास के लेके सचेतो कइलें। समीक्षा क्रम के आगे बढ़ावत नंद कुमार त्रिपाठी अजय कुमार के व्यंग्य संवाद शैली में रचनात्मक प्रयास के सरहलें। ऊ उनका कविता में मातृ-प्रेम के भावुकता के रेखांकित कइलें आ आउर लोक विधा में संभावना जतवलें। डाॅ.फूलचंद प्रसाद गुप्त अजय के कवितन में हिंदी के बदला भोजपुरी शब्दन के प्रयोग कइला के आवश्यकता पs जोर देलें। धर्मेंद्र त्रिपाठी आ चन्देश्वर 'परवाना' अजय यादव के भोजपुरी कविता में आउर गंभीरता से उतरे के सुभाकामना कइलें। अध्यक्षता कs रहल सुभाष चंद्र यादव अजय यादव के उमिर के संगे रचना में परिपक्वता आवे के सुभकामना व्यक्त कइलें।
बइठकी के काव्य-सत्र के सुरुआत कुमार अभिनीतस्व.सत्यनारायण मिश्र 'सत्तन' के रचना से कइलें-
का हो कइसे, कह लें अइसे,
दउरत बादर, मनई जइसे।
अजय यादव चिंतन के आयाम देलें-
हाल जनि पूछऽ जिंदगानी के,
बहुत बरखा, चुअत पलानी के।
राम समुझ साँवरा गांव के अतीत के श्रृंगार कइलें-
मकई के खेतवा में झूमतिया बलिया,
रेशम जस चमके भुआ बार हो
चंद्रगुप्त वर्मा अकिंचन चाँद-तारन से भोजपुरी के सजवलें-
पूनमी रात में चाँद निकरल रहल,
जोत सगरो जमाना में पसरल रहल
सुधीर श्रीवास्तव नीरज फरमवलें-
जहाँ में लौट आवल जा रहल बा,
बचल करजा चुकावल जा रहल बा
डॉ. नवनीत जिनगी के भोजपुरी परिभाषा गढ़लें-
लुका-छिपी खेल बहुत खेल रहल जिनगी
तँवकत सिवाने धकेल रहल जिनगी
ओम प्रकाश पाण्डेय 'आचार्य' अपना छंदन में कहलें-
पनिया हवे एक आ नउवा अनेक,
गइल जगही- जगही पे धराई
अरविंद 'अकेला' समसामयिक सन्दर्भन के उकेरलें-
अबहिन रावन घर में बइठल, महिसासुर लुकाइल बा,
सकुनी मामा घर-घर घूमत,
मनइन में अँझुराइल बा
नर्वदेश्वर सिंह बइठकी के गंभीर बनवलें-
मंदिर-मस्जिद सगरो खोजलीं, खोजलीं सकल जहान,
पवलीं नाहीं अबले एक्को, हम निम्मन इंसान
अवधेश 'नंद' माँ जगदम्बा के दोहा अर्पित कइलें-
दुर्गा दुरगुण नासिनी, सद्गुण के भण्डार।
मनई साँचा राहि पर, नन्द सुखी संसार।।
सृजन गोरखपुरी भोजपुरी गजल के पैना धार देलें-
करेजा जूड़ बा सभकर, करेजी कऽ कटाई हऽ
दुआरे पर महादाता, विभागे में कसाई हऽ
डॉ. फूलचंद प्रसाद गुप्त बइठकी के अपेक्षित ऊँचाई देलें-
केतना बदलि गइल संसार
रिस्तन में परि गइल दरार
चन्देश्वर परवाना भोजपुरी में फूहड़ता पs प्रहार कइलें-
सगरी बिकाय बाकिर ई न बिकाला,
हमरे कलम से न फूहर लिखाला
अध्यक्षीय काव्य पाठ में सुभाष चंद्र यादव एगो नेत्रहीन आदमी के मरम के संजीदगी से उकेरलें-
जोति नैना में दिहलें न दाता, ईहे दुखवा सतावल करेला,
हमके आन्हर आ लाचार कहि के, सगरो लोगवा बोलावल करेला।
एह लोगन के अलावे बइठकी में रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी, धर्मेंद्र त्रिपाठी, डॉ. धनंजय मणि त्रिपाठी, डॉ. विनीत मिश्र आदि के उपस्थिति महत्वपूर्ण रहल। अंत में संरक्षक इं राजेश्वर सिंह सभका प्रति आभार व्यक्त कइलें।