माई के सनेह आ मोगरा के महक: प्रियदर्शनी
"माई के सनेह आ मोगरा के महक"
हमरा दुआरी पऽ
एगो मोगरा के पेड़ बावे,
भोरे-भोरे
माई जब केवाड़ खोल के
दुआरी पऽ आवेली तऽ
भोर के ठंडा-ठंडा हवा आऽ
एह फूल के महक से,
माई फेर से महक उठेऽली।
आ उऽ अपना जिनगी मे चल जाऽली,
जहाँ, कहियो उऽ खुद्दे,
मोगरा के सफेद रंग जइसन,
सनेहिया के रंग में रंगल रहली।
सावन, कजरी, चैती आ
बदरा के झूला मे झूलले रहली।
तनका देर,
बइठ के माई सोचे के
शुरुए करे लीऽ कि तुरंते
ज़िम्मेदारी के बोझ से भरिया जाऽली।
पीहर छोड़ ससुराल अइला आ,
हमनीं के जनम भइला के बाद माई !
कब आपन शौक आ पसंद भुला गइली,
ई तऽ खुद्दे माइयों के नइखे पता ।
बाकिर,
माई आपन भीतर के
मोगरा जइसन सनेहिया के ना भुला पवली।
तबे तऽ उहे सनेहिया हमनीं सब पऽ लुटा के,
आपना मन के भुलावेली आ सनेह के माने सिखावेली............
- प्रियदर्शनी
परिचय : रूद्राणी प्रियदर्शनी, पटशर्मा गायघाट मुजफ्फरपुर के रहे वाला बाड़ी। इनकर 12वीं के पढ़ाई असो पूरा भइल बा, एकरा साथही प्रियदर्शनी NEET के तइयारी कर रहल बाड़ी। हिंदी में कविता लिखे के साथही इनकर परयास बा की ई भोजपुरियो में लिखस। "माई के सनेह आ मोगरा के महक" इनकर पहिला भोजपुरी कविता हऽ जवन उऽ अपना माई खातिर लिखले बाड़ी।