गोरखपुर : भोजपुरी संगम के 168 वीं बइठकी में भोजपुरी कविता में सामाजिक चेतना विषय पs भइल बतकही, कवि लोग आपन कविता से बइठकी के परंपरा आगे बढ़ावल
गोरखपुर। भोजपुरी संगम के 168 वीं बइठकी चंदेश्वर 'परवाना' के अध्यक्षता आ अवधेश 'नंद' के संचालन में बशारतपुर, गोरखपुर में आयोजित भइल। बइठकी के पहिला सत्र में 'भोजपुरी कविता में सामाजिक चेतना' विषय पs बतकही भइल।
बतकही के सुरूआत में यशस्वी यशवंत के आलेख के वाचन करत डॉ. विनीत मिश्र कहलें कि लोकजीवन सतत परिवर्तन आ संघर्ष के जिनगी हs। इहे कारण बा कि भोजपुरी में सामाजिक चेतना के हर पहलू के खूब विकास भइल बा। समकालीन दौर में भोजपुरी में अइसन अनगिनत कवि बा लो, जे सामाजिक समस्या के मुखर रूप से उठवले बा। संगही अपना समय के लोक जीवन के अपना कविता में दर्ज कइले बा लो।
बतकही क्रम के आगे बढ़ावत बागेश्वरी मिश्र 'वागीश' कहलें कि भोजपुरी साहित्य में सामाजिक चेतना खाली गीत, गवनई, कहानी, नाटके में नइखे है बलुक मुहावरन, कहावतन, जोगीरा, संस्कार गीत, श्रम गीत आदि कइयन गो विधा में प्रचुरता से विद्यमान बा। जवन अपना गूढ़ अर्थविन्यास आ चिंतन के दृष्टि से अति महत्वपूर्ण बा। जयप्रकाश मल्ल कहलें कि भोजपुरी सिनेमा आ गायकी से उत्पन्न फूहड़ता सामाजिक चेतना के दृष्टि से एगो कोढ़ हs। भोजपुरी के एह भयानक रोग से उबारे के दायित्व सच्चा साहित्यकारन के बा।
डॉ. फूलचंद गुप्त कहलें कि भोजपुरी में फूहड़ता परोसे वाला साहित्यकार ना बलुक नचनिया बा लो। हमनी के ओकरे के सुनलो जाव आ ओकरे के फूहड़ो कहीं सs, ई दुरंगा बेवहार ठीक नइखे। चंदेश्वर 'परवाना' कबीर के पूर्ण रूप से भोजपुरिया कवि बतावत बतकही सत्र के निष्पक्ष सराहना कइलें।
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दूसरका सत्र में अरविंद 'अकेला', नर्वदेश्वर सिंह, कुमार अभिनीत, चन्द्रगुप्त वर्मा 'अकिंचन', सूरज राम 'आदित्य', सुधीर श्रीवास्तव 'नीरज', डॉ. बहार गोरखपुरी, प्रेमनाथ मिश्र, राम समुझ 'साँवरा', निर्मल गुप्त, जय प्रकाश मल्ल, अवधेश 'नंद', बागेश्वरी मिश्र 'वागीश', डॉ. फूलचन्द गुप्त आ चन्देश्वर 'परवाना' आदि कवि लोग आपन सशक्त रचनात्मक उपस्थिति से बइठकी के समृद्ध कइल लो। आभार ज्ञापन संयोजक कुमार अभिनीत कइलें।