भोजपुरी संगम के 169 वा 'बइठकी' में कवि रंगपाल के इयाद करत कहल गइल 'फगुआ के अगुआ'
Gorakhpur: भोजपुरी संगम के 169 वा 'बइठकी' 66, खरैया पोखरा, बशारतपुर, गोरखपुर में चंद्रगुप्त वर्मा 'अकिंचन' के अध्यक्षता आ अवधेश 'नंद' के संचालन में संपन्न भइल। बइठकी के पहिला सत्र में भोजपुरी के सेसर कलमकार फाग कवि रंगपाल के याद करत उनका रचनात्मक अवदान पऽ चर्चा कइल गइल। चर्चा क्रम के सुरुआत में नर्वदेश्वर सिंह 'मास्टर साहब' द्वारा लिखित आलेख के वाचन करत डॉ.विनीत मिश्र कहले कि 'भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा महाकवि के उपाधि से विभूषित रंगपाल जी पऽ डॉ.मुन्नीलाल उपाध्याय, डॉ राधेश्याम द्विवेदी, डॉ.सुधाकर दुबे आदि अनेक विद्वान लो शोध वाला काम करके उनका के सम्मान देले बा। रंगपाल भोजपुरी फाग के तमाम कालजयी रचना लिखले बाड़े, जवना के बिना फगुआ के रंग आजो फिका हो जाला। पूरा दुनिया उनका फाग गीत पऽ झुमेले। रंगपाल के 'फगुआ के अगुवा कवि' बतावत अवधेश 'नंद' कहले कि फाग के जन-जन तले चहुंपा के ढोल-मजीरा के साथे गावे खातिर विवश कऽ देवे वाला महाकवि के नाम रंगपाल हऽ। बैसवारा, उलारा, चौताल, यती, रंगफाग, रसफाग आदि फाग के कुल विधा सन पऽ उनकर आधिपत्य रहल बा। फाग के अलावा देशभक्ति, खेमटा, दादरा, कजरी, सोहर, तितला, ठुमरी आ झपताल आदि आउरो लोक विधावन में उनकर रचना के बखार से भोजपुरी साहित्य से समृद्ध बा। बइठकी के दूसरका सत्र में कवि लो आपन - आपन फागुनी रचना के रंग बरसवलस:-
गोपाल दुबे प्रार्थना कइले -लिखले गवले कऽ बा नाहीं लूर हो, दे दऽ सहूर माई शारदा!
डॉ.बहार गोरखपुरी भोजपुरी गजल के समृद्ध कइले- आइल आन्हीं, उड़ा के हजार ले गइल, सगरो छप्पर आ छान्ही उजार ले गइल ।
नंदकुमार त्रिपाठी ज़िंदगी पर शोध प्रस्तुत कइले-आपन न बा, सब आन बा, एह रात के न बिहान बा,उड़ि जा ए पंछी खुला गगन, ई जिनगिया केकर भइल?
रामसमुझ 'सांवरा' निर्मल भावना के रंग बरिसवले - दुइ पुड़िया रंग घोरलें, एक बल्टी पानी,फगुनवा में देवरु करें छेड़खानी।
अवधेश 'नंद' के छंद बइठकी के उपलब्धि रहें - झकझोरति, झूरति, झारति बा, झनकावति माथ इ सीति बेयारी,तन तोरति, ताकति, झाँकति बा, कुल्हि भॉंपति बा, जीउ देति बा जारी।
वागीश्वरी मिश्र 'वागीश' माहौल में मादकता बिखरले -तन चंचल बा, मन चंचल बा, चंचल चले बयार,अंग-अंग तोरा चूवे महुआ, चूवे लार हमार।
चंदेश्वर 'परवाना' के गीत बइठकी के नया ऊंचाई देलस- गोरी सुनि के न हो, गोरि सुनि के गवनवा के दिनवा,अकिलि घबराइल।
डॉ.फूलचंद प्रसाद गुप्त भोजपुरी के अपना उत्तम दोहन से समृद्ध कइले - अबकी सम्मति में जरल, निरहू नवकी छान्हि।सम्मति में सम मति कहाँ, अकिलि गइलि बा बान्हि।।
कुमार अभिनीत स्व.सत्य नारायण मिश्र 'सत्तन' के कालजयी छंदन के सरस पाठ कइले-
भेंट करै क चपेट करै, पछुआ पिछिआवत कंत बुझाता, अंग उमंग लसै जे भुजंग, बसे मन रंग बसंत बुझाता।
एकरा अलावा बइठकी में चंद्रगुप्त वर्मा 'अकिंचन', अरविंद 'अकेला', निर्मल कुमार गुप्त 'निर्मल' के रचना सराहे लायक रहल। रवींद्र मोहन त्रिपाठी आ सृजन गोरखपुरी के विशेष उपस्थिति से समृद्ध बइठकी के आभार ज्ञापन संरक्षक इं.राजेश्वर सिंह कइले। अंत में विनम्र कवि भीम प्रसाद प्रजापति के माई श्रीमती ठगनी देवी के निधन पऽ 2 मिनट के मौन राख के उनका के श्रद्धांजलि अर्पित कइल गइल